निर्भय चालीसा
निर्भय चालीसा
सच्चा हो तो किस से डरना।
निर्भय हो कर नित्य विचरना।।
सत्य पंथ को दो आमंत्रण।
जीवन का हो स्वस्थ नियंत्रण।।
गलत काम से डरते रहना।
सही कर्म का पालन करना।।
गलत राह से भय लगता है।
जिसको वह उत्तम बनता है।।
संयम से जो जीवन जीता।
निर्भयता की हाला पीता।।
जिसके जीवन में संयम है।
उससे डरता रहता यम है।।
आत्मनियंत्रण बहुत लुभावन।
आत्मसंयमित जीवन सावन।।
जिसके भीतर पाप भरा है।
भय के कारण सदा मरा है।।
पुण्यार्जन करते रहना है।
पंछी बन उड़ते रहना है।।
छू देना आकाश अतल को।
पहुँचो सूर्य प्रकाश पटल को।।
भयाक्रांत जीवन दुःखदायी।
निर्भयता अति प्रिय सुखदायी।।
निर्भयता को मित्र बनाओ।
अपना जीवन सहज सजाओ।।
भय में दुश्मन छिपा हुआ है।
निर्भयता में मित्र छिपा है।।
निर्भय बनकर राज रजाओ।
सुख-अमृत का भोग लगाओ।।
भाग्योदय जब भी होता है।
निर्भय-बीज मनुज बोता है।।
निडर बना डटकर रहता है।
सच्ची बात किया करता है।।
अच्छा-सच्चा-भला बनोगे।
रोगमुक्त निर्द्वन्द्व रहोगे।।
भयाक्रांत हो भय भागेगा।
हो निर्भीक मनुज जागेगा।।
निर्भय चालीसा अति पावन।
मन को करता दिव्य सुहावन।।
जो यह चालीसा पढ़ता है।
शांत सुशील अभय बनता है।।
दोहा-
निर्भयता में शान्ति है,सुख वैभव आराम।
निर्भय मानव-मन सहज, पाता है विश्राम।।
Gunjan Kamal
17-Dec-2022 05:17 PM
बहुत ही सुन्दर
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Sachin dev
09-Dec-2022 05:43 PM
Amazing
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